Intersections of Fate Threads of Resilience and Renewal
राकेश अपने परिवार के साथ शहर में शिफ्ट हुआ था। गांव में माहौल शहर से अलग होकर दूसरी जगह मन लगने में समय लगता है। राकेश तो शिफ्टिंग के बाद अपने ऑफिस चला जाता। लेकिन उसके बच्चे और मां का मन अभी नहीं लगा। राकेश की पत्नी मेघा तो घर के काम में लगी रहती थी और समय बीत जाता था। शुरू शुरू में तो घर सेट करने में लग जाता और बाद में मन लगने लगा। राकेश की मां और बच्चों का मन नहीं लगा। वह कहते हमें तो वापस गांव छोड़ आओ। हमारा यहां पर मन नहीं लग रहा है। राकेश अपनी मां को कहता है आप कुछ दिन रहकर देखो। धीरे-धीरे मन लग जाएगा। और आप गांव में अकेले कैसे रहोगे। अकेले तो वैसे भी आपका मन नहीं लगेगा। मां ने भी सोचा यह ठीक कह रहा है। वहां अकेले में मेरा मन नहीं लगेगा। धीरे-धीरे समय बीतता है। वे लोग वहां पर अच्छे से रहने लग जाते हैं। उनके पड़ोस में भी अच्छी जानकारी हो जाती है। आसपास के लोगों से अच्छे से मिलकर रहने लगते हैं और वहां पर गांव के जैसा मिलनसार माहौल बन जाता है। उनके पड़ोसियों से भी एक परिवार जैसा रिश्ता बन गया। कभी किसी को किसी भी चीज की जरूरत होती। वह एक दूसरे की मदद पूरे मन से करते थे। सब ठीक-ठाक चल रहा था। लेकिन समय कब बदल जाए कुछ पता नहीं चलता है। एक दिन राकेश के पड़ोस में चोरी हो जाती है। कोई कीमती सामान नहीं। बल्कि बाहर रखा सामान ही चोरी हो जाता है। वे लोग एक दूसरे पर ही शक करने लगते हैं। जिस कारण पड़ोस में आपस में रिश्ते खराब हो जाते हैं। अब बस पड़ोस में औपचारिकता ही रह जाती है। लोग अपने काम में ही लगे रहते हैं। इतनी बातचीत भी नहीं हो पाती। जिस वजह से राकेश की मां और उसके बच्चों का मन खराब हो जाता है। एक दिन राकेश की बेटी नेहा अपनी दादी से बोलती है दादी अपने पड़ोसी समीर का व्यवहार बदल गया है। अब वह बातचीत करके खुश नहीं है। दादी उसे समझता है। बेटा बदलाव उनकी तरफ से ही नहीं। हमारी तरफ से भी हुआ है। जब वह बात नहीं कर रहे हैं तो क्या पता उन्हें कोई परेशानी हो सकती है। हमने भी तो आगे से उनसे बात नहीं की। उन्हें भी हमारे बारे में ऐसा ही लगता होगा। एक दिन राकेश की पत्नी मेघा सीडीओ से गिर जाती है। उसे समय राकेश घर पर नहीं था। तब उनके पड़ोसी आवाज सुनकर घर आते हैं और पूछते हैं क्या हुआ। तब दादी सब बता देती है उनका पड़ोसी ही राकेश की पत्नी को अस्पताल लेकर जाता है। वह राकेश को भी अस्पताल में बुला लेते हैं। समीर और रिया राकेश की पत्नी और उसके परिवार का अच्छे से ध्यान रखते हैं। राकेश की पत्नी मेघा को गंभीर चोट आई है। समीर राकेश से कहता है राकेश सब ठीक हो जाएगा। तुम चिंता मत करो। हम दोनों भाई मिलकर सब संभाल लेंगे। राकेश समीर से कहता है भाई तेरा बहुत-बहुत धन्यवाद। अगर आज तू ना होता तो पता नहीं क्या हो जाता। समीर कहता है ऐसी बातें मत कर। तू मेरे भाई जैसा है। कुछ तीन बार राकेश की पत्नी मेघा को अस्पताल से छुट्टी मिल जाती है। इतने दिन से समीर और प्रिया ही राकेश के बच्चे और मां का ख्याल रख रहे थे। राकेश अपनी पत्नी को घर लेकर आ जाता है। समीर और रिया कहते हैं भाभी जी आप अच्छे से आराम करो। घर की चिंता मत करो। हम मिलकर सारे काम कर लेंगे। आप बस अपनी सेहत पर ध्यान रखो। अगले दिन समीर राकेश के घर की साफ-सफाई के लिए एक नौकरानी का इंतजाम कर देता है। और राकेश के परिवार के खाने का और जरूरी चीजों का ख्याल समीर और रिया रखते हैं। जैसे बच्चों का स्कूल का राकेश और बच्चों का टिफिन समीर के घर से ही आता था। और समीर की पत्नी रिया अपना काम खत्म करके मेघा के पास आ जाती थी। रिया का कोई परिवार नहीं होता है। वह अनाथ होती है। इसलिए परिवार में रहना उसे अच्छा लगा था। वह राकेश की मां से अपनी मां जैसा ही
व्यवहार करती थी। मां भी समीर और उसकी पत्नी को अपने बच्चे जैसा ही समझना लगती है। इन दोनों परिवार को यह एक्सीडेंट बहुत ज्यादा करीब ले आता है। दोनों एक परिवार की तरह रहने लगते हैं। अक्सर साथ ही घूमने-फिरने जाते थे। एक दिन राकेश की मां राकेश की बेटी नेहा को समझती है। बेटा देख तू अपने पड़ोसी के बारे में क्या सोच रही थी। और देख उन्होंने हमारी कितनी मदद की। नेहा कहती है हां दादी मुझे से गलती हो गई। मुझे उनके बारे में ऐसा नहीं सोचना चाहिए था।मुझे माफ कर देना दादी। बेटा कोई बात नहीं। हम लोगों को गलत समझ लेते हैं। हमें उनकी गलती तो दिख जाती है। और हम अपनी गलती नहीं देख पाते हैं। बेटा रिश्ते में बदलाव दोनों तरफ से आते हैं। अगर एक तरफ से भी शुरुआत हो जाए तो रिश्ता मजबूत हो जाता है। अगर दोनों ही अपनी-आपकी मत में रहते हैं तो रिश्ते कमजोर होकर टूटने लगते हैं। अगर रिश्तो को मजबूत बनाना है तो अगर एक जन बात नहीं कर रहा तो दूसरे को बात कर लेनी चाहिए। ताकि रिश्ते और ज्यादा न बिखरे और मजबूत और प्यार हो सके।