KARVA CHAUTH

KARVA CHAUTH

Karva Chauth moon

During Karva Chauth, married Hindu women fast from sunrise to moonrise to pray for the well-being, longevity, and prosperity of their husbands. The fast is quite rigorous, as women abstain from food and water until they see the moon, and it's broken with the first sip of water and a meal shared with their husbands.

Women usually gather in the evening to perform rituals, sing songs, and offer prayers. The central part of the ritual involves looking at the moon through a sieve or a dupatta (a veil) and then looking at their husband's face. This is believed to be a way of transferring the husband's essence and energy to the wife and seeking his well-being. The moon is considered a symbol of long-lasting love and a stable relationship.

Karva Chauth is a significant cultural and religious celebration in India and is marked by a sense of togetherness and the expression of love and care between married couples. The festival is not just about fasting but also about the emotional and spiritual connection between husband and wife. It's a time for women to show their devotion and love for their spouses and to seek blessings for a happy and prosperous married life.

Karva chauth fast is on 1st november 2023. Moon rise time is 8:42PM.

Method of Karva Chauth:- On kartik Month Chaturthi. On the Day of Karva Chauth, a wooden plank and a globular water container(Lota) place on the Worship Place. To give Bayna to your mothe-in-law. Take a Soil or Sugar Pot and Put some sugar or Any thing or some cash and tie it with rolli and do worshif with Jaggery and Rice and Put Tilak 13 time on your sugar or soil pot and hold in your hand and Give a seven round of your Wooden Plank. Then do worship of Ganesh ji and offer up Rolli, jaggery and rice. Take 13 grain of wheat in your hand and listen a story./ After listen the story Touch your Mother-In-Law feet and leave your Water Container near the worship place and do offer that water to moon after you seen it just like seen in photo
eat Prasad and open your Fast.

Karva Chauth ki Katha:-

एक साहूकार था। उसके सात बेटे थे और एक बेटी थी। वह सातों भाईयों की प्यारी बहन थी। एक साथ ही बैठकर वह खाना खाते थे। एक दिन कार्तिक की चौथ आई तो उसकी बहन ने करवाचौथ का व्रत रखा। सारे भाई भोजन करने आए और अपनी बहन से बोले आ बहन तू भी खाना खा ले। उनकी मां बोली आज यह खाना नहीं खाएगी। इसका करवाचौथ का व्रत है। जब चांद निकलेगा तभी यह खाना खाएगी। तो उसके भाइयों ने छल कपट से जंगल में आग जलाकर छलनी में से चांद दिखा दिया तो वह अपनी भाभियों से बोली चला भाभी चांद निकल आया है। अर्घ दे दो। तो उसकी भाभियां बोली यह तो तेरा चांद निकला है। हमारा तो रात को निकलेगा। यह सुनकर भाईयों के कहने से उसने चांद को अरग दे दिया और खाना खाने बैठ गई। पहला टुकड़ा तोड़ा बाल निकला, जूसरा टुकड़ा तोड़ा छींक मारी, तीसरा टुकड़ा तोड़ने के लिए जैसे ही बैठी राजा के घर से बुलावा आ गया कि राजा का लड़का बीमार है जल्दी भेजो।

मां ने लड़की के पहनने के लिए तीन बार संदूक खोला तीनों बार सफेद रंग की ही साड़ी निकली। अब वह सफेद कपड़े पहनकर ही ससुराल गई और मां ले लकड़ी के पल्ले में एक सोने का सिक्का डाल दिया और बोली रास्ते में जो भी मिले पैर पड़ती जाइयो जो तुझे सुहाग की आशीष दे उसे सोने का सिक्का दे देना और पल्ले को गांठ लगा लेना। अब उसे रास्ते में जो कोई भी मिला सबके पैर पड़ी पर किसी ने भी सुहाग का आशीष नहीं दी। अब वह ससुराल में आई तो दरवाजे पर छोटी ननद खड़ी थी। वह उसके पैर पड़ी तो ननद बोली- सीली हो, सपूती हो, सात बेटों की मां हो, मेरे भाई का सुख देख। अब उसने सोने का सिक्का ननद को देकर पल्ले में गांठ मार ली। उसके बाद वह अंदर आई। आकर देखा की उसका पति मरा पड़ा था। अब वह उसे लेकर एक कोठरी में पड़ी रही। एक साल तक उसकी सेवा की। उसकी सास बांदी के साथ बची कुची रोटी भेज देती। इस प्रकार उसने एक साल तक अपने पति की सेवा की।

सालभर बाद करवाचौथ का व्रत आया। सारी पड़ोसनों ने नहा धोकर करवाचौथ का व्रत रखा। सबने सिर धोकर हाथों में मेहंदी लगाई। चूड़ियां पहनी। वह सब कुछ देखती रही। एक पड़ोसन ने कहा कि तू भी करवाचौथ का व्रत रख ले। तब वह बोले मैं कैसे करूं। तो वह बोली चौथ माता की कृपा से सब ठीक हो जाएगा। उसके कहने से उसने भी व्रत रख लिया। थोड़ी देर के बाद करवा बेचने वाली आई। करवे लो री करवे लो। भाईयो की प्यारी करवे लो। ऐ करवे वाली मुझे भी करवा दे जा। वह कहने लगी मेरी दूसरी बहन आएगी वह तुझे करवा देगी। इस तरह पांच बहने आकर चली गई। पर किसी ने भी करवा नहीं दिया। फिर छठि बहन आई तो वह भी बोली की मेरी सातवी बहन आएगी तो वह तुझे करवा देगी। बस तू रास्ते में कांटे बिखेरकर रख देना। जब भी खूब चिल्लाते हुए आएगी तो उसके पैर में कांटे चुभ जाएंगे। तब तू सूई लेकर बैठ जाना और उसके पैर पकड़कर छोड़ना मत। और उसके पैर से कांटा निकाल देना। तो वह तुझे आशीर्वाद देगी। भाई जियो, साई जियो। जब वह तुम्हे आशीर्वाद देगी तो तुम उससे करना मांग लेना। तब वह तुझे करवा देकर जाएगी। फिर तू अजमन करना जिससे तेरा पति ठीक हो जाए।

अब उसने वैसे ही किया। सारे रास्ते में कांटे बिछा दिए। जब करवे वाली करवा लेकर आई तो उसके पैरों में कांटे चुभ गए। उसके बाद उसने करवा वाली के पैर पकड़कर कांटा निकाल दिया। तो उसने आशीर्वाद दिया। तब वह बोली तूने मुझे आशीर्वाद दियाहै तो करवे भी देकर जा। तो वह बोली - तूने तो मुझे ठग लिया। यह कहकर उसने उसे करवा दे दिया। अब वह करवा लेकर उसने उजमन की तैयारी की। व्रत रखा। राजा का लड़का भी ठोक हो गया और बोला मैं बहुत सोया हूं। तब वह बोली सोए नहीं मुझे बारह महीने हो गए आपकी सेवा करते करते। फिर उसने चौथ माता का उजमन अच्छा तरह से किया। अब उसने चौथ माता की कहानी सुनी। अब वह दोनों चौपड़ खेलने लग गए इतने में उसकी बांदी तेल की पली और गुड़ की डली लेकर आ गई। दोनों को खेलते देखकर सासू से जाकर बोली महलों में खूब रौनक है। बहू चौपड़ सार खेल रही है। इतना सुनते ही सासू देखने के लिए आई। दोनों को देखकर बहुत खुश हुई। बहु ने सासू के पैर दबाए और सासू बोली बहू सच सच बता तूने क्या किया? उसने सारा हाल अपनी सासू को बताया। तो राजा ने सारे शहर में ढिंढोरा पिटवाया की अपने पति का सुरक्षा के लिए सभी बहने करवा चौथ का व्रत रखें। पहले करवे को अपने पिहर में जाकर उजमन करें। हे चौथ माता जैसा राजा के लड़के को जीवनदान दिया है वैसे सब किसी को देना। कहानी सुनते समय कटोरी में चावल लें। चांद को अरग देते समय ऐसा सात बार बोलें-

चन्दा ए चन्द्रावलिए चन्दा आया बार में, उठ सुहागन अरग दें, मैं बैठी खी बाट में।
काहें का तेरा कंडला काहे का तेरा हार, सोने का मेरा कंडला जगमोतियन का हार।
कहां बसे तेरा पेवड़ा कहां बसे ससुराल। आम तवे मेरा पेवड़ा नीम तले ससुराल।

Bindayak ji Story:-

एक बहुत गरीब अंधी बूढ़ी माई थी, उनका एक छोटा सा परिवार था जिसमे उसका बेटा और बहू थी, बूढ़ी माई की भगवान श्री गणेश में बहुत श्रद्धा थी। वह हमेशा गणेश जी की पूजा करती थी। तो एक रोज गणेश जी (Ganesh ji Vinayak Baba) ने कहां की बुढ़िया माई कुछ मांग मै तेरी पूजा भगती से खुश हूँ। बुढ़िया माई ने कहा मुझे तो मुझे तो मांगना नहीं आता तो गणेश जी भगवान ने कहा: अपने बेटे बहू से पुछ, मै कल फिर आउंगा - अपने बेटे बहू से पूछ कर बताती हूँ।
तो वह अपने बेटे से बोली - आज मुझे प्रभु विनायक बाबा ने स्वयं दर्शन दिए और उनसे वर मांगने को कहा है, मुझे तो पता नहीं क्या मांगना चाहिए। तो तुम दोनो ही कुछ सोच समझ कर बताओ क्या मांगना चाहिये, वो कल फिर आएंगे।

बेटे ने कहा कि मां धन दौलत मांग ले और फिर अपनी बहू से पूछा तो वह बोली कि सासु जी हमारी शादी को काफ़ी समय भी हो गया है, और आपको पोता भी चाहिए तो क्यू ना, पोता ही मांग लो।
तो बुढ़िया मांई ने सोचा कि यह दोनों तों अपने मतलब की चीज मांग रहे हैं सो सोचा मेरी प्यारी सहेली से पुछती हूं वो सही ही सलाह देगी पड़ोसन से जाकर कहा कि मुझे बिन्दायक जी ने कहा है - की कुछ मांग।

मैंने अपने बेटे से पूछा, बेटा तो कहता है कि धन मांग, और बहू कहती है पोता मांग लो।तब पड़ोसन बोली कि ना तु धन मांग, ना तु पोता मांग तु थोड़े दिन तो जीयेगी सो तु आंखें मांग लें।

तो उसने पड़ोसन की बात नही मानी।
सरल सी बुढ़िया मांई घर पर जाकर सोचने लगी की ऐसा क्या वरदान लिया जाए की बेटा बहू भी खुश हो जाए या मेरे मतलब की बात भी हो जाए।
अगले दिन गणेश जी आये और बोले कि बुढ़िया मांई आज कुछ मांग लें।
तब वह बोली - आंख दे, जिससे सोने के कटोरे में पोते को दूध पीता देखु, सुहाग दे, निरोग काया दे, 9 करोड़ की माया दे, बेटा पोते, परपोते, दुनिया में भाई भतीजे सारे भरे पूरे परिवार को सुख दे, मोक्ष दे।

तब गणेश जी बोले कि माई तूने तो मुझे ठग लिया और सब कुछ मांग लिया। और मुस्कुराते हुए बोले - परंतु जैसे तुमने कहा सब वैसे ही होगा और यह कहकर गणेश जी अंतर्ध्यान हो गए। बुढ़िया माई के उसी प्रकार सब कुछ हो गया।

हे गणेश जी! जैसा बुढ़िया माई को दिया वैसा सबको देना।

Bindayak Ji story 2:-

विन्दायक बाबा रंगा चंगा खेती कर बिजी ने जावे शिक्षा के बल   बैठा खावे। बिलकुल छोटी सी कहानी विन्दायक जी की !

Bindayak Ji story 3:-

एक बिन्दायकजी महाराज थे, जिको चुटकी में चावल और चमची म दूध लेकर घूमा कि कोई खीर कर दो। जना एक बुढ़िया माई बोली कि ल्यां म कर दू। एक कटोरी ल्याई, बिन्दयकजी बोल्या कि बुढ़िया माई कटोरी के ल्याई, टोप चढ़ा बुढ़िया माई बोली कि इतना बड़ा म के करगो, याह कटोरी ही भोत है। बिन्दायकजी बोल्या कि तू चढ़ा कर देख। बुढ़िया माई न टोप चढ़ा दियो, चढ़ातां ही टोप दूध स भरगो। बिन्दायकजी महाराज बोल्या कि म बाहर न जाकर आऊँ हूँ, तू खीर बना कर राखिये। खीर बन कर तैयारी होगी। बिन्दायकजी आयो कोनी, तो बुढ़िया माई को मन चालगो । बा दरवाजा के पीछे बैठ कर खीर खान लागी और बोली कि जय बिन्दायकजी महाराज भोग लगाल्यो। इतना म ही बिन्दायकजी आया और पूछ्या कि बुढ़िया माई खीर करली के । बुढ़िया माई बोली कि हाँ कर ली, आव जीम | जद बिन्दायकजी बोल्या कि म तो जीम लियो, जद तू भोग लगाई। बुढ़िया माई बोली कि हे महाराज, मेरा तो परदा फास कर दिया लेकिन और कोई का मत करियो । बिन्दायकजी महाराज न बुढ़िया माई क धन क अटूट भन्डार कर दिया और बोल्या कि म तेर सात पीढ़ी तांई कोनी नीमहूँ। हे बिन्दायकजी महाराज! जिसो बुढ़िया माई न दियो, बिसो सब न देइये। कहता न. सुणतां न, हुंकारा भरतां न, और आपना सारा परिवार न देइये।

हे गणेश जी! जैसा बुढ़िया माई को दिया वैसा सबको देना।

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Prateek

MY self Prateek tanwar, in 2026 I'll complete my graduation with B.Sc Non Medical.

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