Vasundhara's Awakening: A Story of Empowerment
एक संपन्न और खुशहाल परिवार होता है जिसमें दादा-दादी, मम्मी, पापा, और दो बच्चे होते हैं। इस परिवार में एक बेटी होती है जो समझदार और प्रेरणा स्रोत होती है जिसका नाम आस्था होता है। आस्था एक टीनेजर होती है। आस्था की मम्मी समझदार, सहनशील, और प्रगतिशील महिला होती है, उसका नाम वसुंधरा होता है। वसुंधरा अपने घर को बहुत अच्छे से संभालती है और किसी को कोई शिकायत का मौका नहीं देती है। वसुंधरा पढ़ी-लिखी महिला है और वह अपने पति अशोक की भी ऑफिस के कार्य में मदद करती है। वह घर का हर छोटा-बड़ा कार्य पूरी मेहनत से करती है और अपने बच्चों और मां-बाप का अच्छे से ख्याल रखती है। वसुंधरा आस्था पर पूरा ध्यान देती है और वह उसे हर छोटी-बड़ी बात के बारे में अच्छे से समझती रहती है। आस्था भी अपनी मम्मी को सारी बातें बताती है।
आस्था के पापा (अशोक) प्राइवेट नौकरी करते हैं और परिवार की इनकम इसी नौकरी से ही आती है। वह आर्थिक रूप से सक्षम होते हैं और किसी चीज की कोई परेशानी नहीं होती है। उन सब की जिंदगी खुशियों से भरी हुई थी। लेकिन एक दिन अचानक उनकी खुशियों पर ग्रहण लग जाता है। एक शाम को वसुंधरा के पास फोन आता है कि अशोक का एक्सीडेंट हो गया है। उन पर जैसे दुखों का पहाड़ टूट पड़ता है। अशोक गंभीर हालत में होता है। अशोक की ऐसी हालत देखकर वसुंधरा अपने आप को हारा मान लेती है। आस्था अपनी मम्मी को संभाल लेती है और उसे मोटिवेट करती है। कुछ समय बाद अशोक ठीक होकर घर वापस आ जाता है। लेकिन वह कोई काम करने में सक्षम नहीं होता है। अशोक के पास जो जमा पैसे होते हैं, वह इलाज और घर का खर्च चलाने में लग जाते हैं। जैसे-जैसे सेविंग कम होती जाती है, वैसे वसुंधरा की चिंता बढ़ने लगती है। वसुंधरा सोचती है, "अब घर चलाने के लिए मुझे काम करना चाहिए।" वसुंधरा एक हाउसवाइफ होती है, इसलिए उसे बाहर के काम करने के बारे में कुछ ज्यादा नहीं पता होता है। क्योंकि उसकी जिंदगी परिवार और घर संभालने में ही निकल रही थी। लेकिन अब उसकी नौकरी करना जरूरी था ताकि वह घर की जरूरत को पूरा कर सके। वसुंधरा अपने पति अशोक के दोस्तों के ऑफिस में भी जाती है। नौकरी के लिए वह उसके साथ बुरा व्यवहार करते हैं जो पहले भाभी कहते थे, इतनी इज्जत करते थे। वह आज अशोक के बीमार होते ही कैसे बदल गए हैं, वह इतनी बदतमीजी करते हैं, यह मुझे नहीं पता था। वह अशोक को इस बारे में कुछ नहीं बताती है। वसुंधरा के सामने समाज का एक नया रूप आ रहा था जो इतना कठोर है, जिसको मौका मिलता है, वह ही किसी की मजबूरी का फायदा उठाने से पीछे नहीं हटता है। बहुत कठिनाइयों के बाद वसुंधरा को नौकरी मिल जाती है। अब उसे पर घर और ऑफिस दोनों की जिम्मेदारी आ जाती है। घर के सदस्य सोचते हैं कि वसुंधरा जैसे पहले काम करती थी, वैसे अब भी करें, क्योंकि घर के सभी सदस्य वसुंधरा पर पूरी तरह से निर्भर रहते हैं। वसुंधरा को घर और ऑफिस के काम में संतुलन बनाने में परेशानी होती है। ऑफिस में पुरुष जितना काम करने पर भी उसे वेतन पुरुषों के मुकाबले कम मिलता है, जबकि उनके पद एक समान होता है। और उनके सहकर्मी की बातें सुनाई पड़ती हैं। वह अलग वसुंधरा को अब धीरे-धीरे समझ में आने लगता है कि आज के समय में भी औरत का कितना शोषण हो रहा है। एक समान पद होने पर भी एक जैसा वेतन क्यों नहीं मिलता है, जबकि एक औरत भी पुरुष के बराबर ही ऑफिस में काम करती है और और औरत को तो घर भी संभालना पड़ता है, कम से कम पुरुष को यह जिम्मेदारी तो नहीं होती। बोलने को तो औरत और पुरुष को बराबर का हक देने के लिए कानून तो बना दिए हैं, लेकिन हमारे समाज में आज भी बहुत ज्यादा भेदभाव है। आदमी और पुरुष के अधिकारों को लेकर वसुंधरा खूब बराबरी की बातें करती थी, लेकिन अब समाज की सच्ची तस्वीर वसुंधरा के सामने आ रही थी। वसुंधरा अब बहुत मेहनत करके घर और ऑफिस में संतुलन बनाने की कोशिश कर रही है, कि वह अपने परिवार को भी संभाले और ऑफिस का काम भी हो जाए। अब वसुंधरा की जिम्मेदारी का बोझ उसके मन पर भी पड़ने लगता है, उसका स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है। बात-बात पर उसे गुस्सा आ जाता है। आस्था अपनी मम्मी के बदले स्वभाव से अपनी मां की मनोदशा समझ गई है, वह हर काम में अपनी मम्मी का साथ देती है, उन्हें मोटिवेट करती है। एक दिन वसुंधरा की हिम्मत जवाब दे जाती है और वह रोने लग जाती है। अपने पति से कहती है, "मुझे कोई काम नहीं हो रहा है, मैं किसी भी लायक नहीं हूं।" आस्था उसे समय अपने पापा के कमरे में आ जाती है, वह अपनी मम्मी को रोते हुए देख लेती है। आस्था को देखकर उसकी मम्मी भी सामान्य हो जाती है। आस्था भी ऐसा दिखती है कि उसे कुछ नहीं पता और वह वहां से चली जाती है। आस्था के पापा वसुंधरा को समझते हैं, उसे प्रोत्साहित करते हैं। आस्था भी अपने मम्मी को कमजोर होते हुए नहीं देख सकती थी। इसलिए वह सबसे पहले घर के माहौल को बदलने लगती है। घर के सदस्यों को भी समझता है की "मम्मी अब हर एक काम नहीं कर सकती है, इसलिए हमें मम्मी की मदद करनी चाहिए, और कुछ ना तो हम मम्मी का उत्साह तो बड़ा ही सकते हैं।" घर में सभी लोग आस्था की बात से सहमत हो जाते हैं। आस्था घर का काम काफी हद तक कर लेती है। अपने पापा को भी संभाल लेती है। वह अपनी पढ़ाई करती है और अपने भाई को भी पढ़ाती है। बच्चों को पढ़ाई करते हुए देख, वसुंधरा को अच्छा लगता है। अब सभी लोग अपना थोड़ा-बहुत काम खुद से कर लेते थे। इसमें ही वसुंधरा की मदद हो जाती थी। आस्था कहती है, "मम्मी, आप बहुत बहादुर हो, जो सारे काम कर लेते हो।" घर के सभी सदस्य वसुंधरा का उत्साह बढ़ाते रहते हैं। धीरे-धीरे वसुंधरा की मनोदशा भी सुधर जाती है। घर में पहले की तरह ही खुशहाली आ जाती है। ऐसा आस्था के कारण होता है, जो समय पर अपनी मम्मी की मनोदशा समझ जाती है और घर के सदस्यों को भी अपनी मम्मी की मनोदशा की स्थिति के बारे में अवगत कराती है। क्योंकि इंसान सब हार कर भी खड़ा हो जाता है, लेकिन हिम्मत हार कर कभी खड़ा नहीं हो पता है। इसलिए हमें कभी हिम्मत नहीं होनी चाहिए।